अथर्ववेद - अश्लीलता के कुछ और नमूने
वेदों में किस प्रकार अश्लीलता, जन्गी बातों और जादू-टोने को परोसा गया है.
धर्म-युद्ध:
हिन्दुओं के अन्य धर्मग्रंथों रामायण, महाभारत और गीता की भांति वेद भी
लडाइयों के विवरणों से भरे पड़े है. उनमें युद्धों की कहानियां, युद्धों के
बारे में दांवपेच,आदेश और प्रर्थनाएं इतनी हैं कि उन तमाम को एक जगह
संग्रह करना यदि असंभव नहीं तो कठिन जरुर है. वेदों को ध्यानपूर्वक पढने से
यह महसूस होने लगता है की वेद जंगी किताबें है अन्यथा कुछ नहीं। इस
सम्बन्ध में कुछ उदाहरण यहाँ वेदों से दिए जाते है ....ज़रा देखिये
(1)
हे शत्रु नाशक इन्द्र! तुम्हारे आश्रय में रहने से शत्रु और मित्र सही
हमको ऐश्वर्य्दान बताते हैं |६| यज्ञ को शोभित करने वाले, आनंदप्रद,
प्रसन्नतादायक तथा यज्ञ को शोभित करने वाले सोम को इन्द्र के लिए अर्पित
करो |१७| हे सैंकड़ों यज्ञ वाले इन्द्र ! इस सोम पान से बलिष्ठ हुए तुम
दैत्यों के नाशक हुए. इसी के बल से तुम युद्धों में सेनाओं की रक्षा करते
हो |८| हे शत्कर्मा इन्द्र ! युद्धों में बल प्रदान करने वाले तुम्हें हम
ऐश्वर्य के निमित्त हविश्यांत भेंट करते हैं |९| धन-रक्षक,दू:खों को दूर
करने वाले, यग्य करने वालों से प्रेम करने वाले इन्द्र की स्तुतियाँ गाओ.
(ऋग्वेद १.२.४)
(२) हे प्रचंड योद्धा इन्द्र! तू सहस्त्रों प्रकार के
भीषण युद्धों में अपने रक्षा-साधनों द्वारा हमारी रक्षा कर |४| हमारे
साथियों की रक्षा के लिए वज्र धारण करता है, वह इन्द्र हमें धन अथवा बहुत
से ऐश्वर्य के निमित्त प्राप्त हो.(ऋग्वेद १.३.७)
(३) हे संग्राम में
आगे बढ़ने वाले और युद्ध करने वाले इन्द्र और पर्वत! तुम उसी शत्रु को अपने
वज्र रूप तीक्षण आयुध से हिंसित करो जो शत्रु सेना लेकर हमसे संग्राम करना
चाहे. हे वीर इन्द्र ! जब तुम्हारा वज्र अत्यंत गहरे जल से दूर रहते हुए
शत्रु की इच्छा करें, तब वह उसे कर ले. हे अग्ने, वायु और सूर्य ! तुम्हारी
कृपा प्राप्त होने पर हम श्रेष्ठ संतान वाले वीर पुत्रादि से युक्त हों और
श्रेष्ठ संपत्ति को पाकर धनवान कहावें.(यजुर्वेद १.८)
(४) हे अग्ने
तुम शत्रु-सैन्य हराओ. शत्रुओं को चीर डालो तुम किसी द्वारा रोके नहीं जा
सकते. तुम शत्रुओं का तिरस्कार कर इस अनुष्ठान करने वाले यजमान को तेज
प्रदान करो |३७| यजुर्वेद १.९)
(५) हे व्याधि! तू शत्रुओं की सेनाओं को
कष्ट देने वाली और उनके चित्त को मोह लेने वाली है. तू उनके शरीरों को साथ
लेती हुई हमसे अन्यत्र चली जा. तू सब और से शत्रुओं के हृदयों को
शोक-संतप्त कर. हमारे शत्रु प्रगाढ़ अन्धकार में फंसे |४४|
(६)हे बाण
रूप ब्राहमण ! तुम मन्त्रों द्वारा तीक्ष्ण किये हुए हो. हमारे द्वारा
छोड़े जाने पर तुम शत्रु सेनाओं पर एक साथ गिरो और उनके शरीरों में घुस कर
किसी को भी जीवित मत रहने दो.(४५) (यजुर्वेद १.१७)
(यहाँ सोचने वाली
बात है कि जब पुरोहितों की एक आवाज पर सब कुछ हो सकता है तो फिर हमें चाइना
और पाक से डरने की जरुरत क्या है इन पुरोहितों को बोर्डर पर ले जाकर खड़ा
कर देना चाहिए उग्रवादियों और नक्सलियों के पीछे इन पुरोहितों को लगा देना
चाहिए फिर क्या जरुरत है इतनी लम्बी चौड़ी फ़ोर्स खड़ी करने की और क्या
जरुरत है मिसाइलें बनाने की)
अब जिक्र करते है अश्लीलता का :-वेदों में
कैसी-कैसी अश्लील बातें भरी पड़ी है,इसके कुछ नमूने आगे प्रस्तुत किये
जाते हैं (१) यां त्वा .........शेपहर्श्नीम || (अथर्व वेद ४-४-१) अर्थ :
हे जड़ी-बूटी, मैं तुम्हें खोदता हूँ. तुम मेरे लिंग को उसी प्रकार उतेजित
करो जिस प्रकार तुम ने नपुंसक वरुण के लिंग को उत्तेजित किया था.
(२) अद्द्यागने............................पसा:||
(अथर्व वेद ४-४-६) अर्थ: हे अग्नि देव, हे सविता, हे सरस्वती देवी, तुम इस
आदमी के लिंग को इस तरह तान दो जैसे धनुष की डोरी तनी रहती है
(३) अश्वस्या............................तनुवशिन
|| (अथर्व वेद ४-४-८) अर्थ: हे देवताओं, इस आदमी के लिंग में घोड़े, घोड़े
के युवा बच्चे, बकरे, बैल और मेढ़े के लिंग के सामान शक्ति दो
(४) आहं
तनोमि ते पासो अधि ज्यामिव धनवानी, क्रमस्वर्श इव रोहितमावग्लायता (अथर्व
वेद ६-१०१-३) मैं तुम्हारे लिंग को धनुष की डोरी के समान तानता हूँ ताकि
तुम स्त्रियों में प्रचंड विहार कर सको.
(५) तां पूष...........................शेष:||
(अथर्व वेद १४-२-३८) अर्थ: हे पूषा, इस कल्याणी औरत को प्रेरित करो ताकि
वह अपनी जंघाओं को फैलाए और हम उनमें लिंग से प्रहार करें.
(६) एयमगन....................सहागमम
|| (अथर्व वेद २-३०-५) अर्थ: इस औरत को पति की लालसा है और मुझे पत्नी की
लालसा है. मैं इसके साथ कामुक घोड़े की तरह मैथुन करने के लिए यहाँ आया
हूँ.
(७) वित्तौ.............................गूहसि
(अथर्व वेद २०/१३३) अर्थात: हे लड़की, तुम्हारे स्तन विकसित हो गए है. अब
तुम छोटी नहीं हो, जैसे कि तुम अपने आप को समझती हो। इन स्तनों को पुरुष
मसलते हैं। तुम्हारी माँ ने अपने स्तन पुरुषों से नहीं मसलवाये थे, अत: वे
ढीले पड़ गए है। क्या तू ऐसे बाज नहीं आएगी? तुम चाहो तो बैठ सकती हो, चाहो
तो लेट सकती हो.
(अब आप ही इस अश्लीलता के विषय में अपना मत रखो और ये
किन हालातों में संवाद हुए हैं। ये तो बुद्धिमानी ही इसे पूरा कर सकते है
ये तो ठीक ऐसा है जैसे की इसका लिखने वाला नपुंसक हो या फिर शारीरिक तौर पर
कमजोर होगा तभी उसने अपने को तैयार करने के लिए या फिर अपने को एनर्जेटिक
महसूस करने के लिए किया होगा या फिर किसी औरत ने पुरुष की मर्दानगी को
ललकारा होगा) तब जाकर इस प्रकार की गुहार लगाईं हो.
आओ अब जादू टोने पर
थोडा प्रकाश डालें : वैदिक जादू-टोनों और मक्कारियों में किस प्रकार साधन
प्रयोग किये जाते थे, इस का भी एक नमूना पेश है :
यां ते.......जहि || (अथर्व वेद ४/१७/४)
अर्थात : जिस टोने को उन शत्रुओं ने तेरे लिए कच्चे पात्र में किया है,
जिसे नीले, लाल (बहुत पके हुए) में किया है, जिस कच्चे मांस में किया है,
उसी टोने से उन टोनाकारियों को मार डाल.
सोम पान करो : वेदों में सोम
की भरपूर प्रशंसा की गई है. एक उदाहरण "हे कम्यवार्षेक इन्द्र! सोमभिशव के
पश्चात् उसके पान करने के लिए तुम्हें निवेदित करता हूँ यह सोम अत्यंत
शक्ति प्रदायक है, तुम इसका रुचिपूर्वक पान करो." (सामवेद २(२) ३.५)
संतापक तेज : सामवेद ११.३.१४ में अग्नि से कहा गया है "हे अग्ने ! पाप से
हमारी रक्षा करो. हे दिव्य तेज वाले अग्ने, तुम अजर हो. हमारी हिंसा करने
की इच्छा वाले शत्रुओं को अपने संतापक तेज से भस्म कर दो."
सुनते
है,देखते नहीं : ऋग्वेद १०.१६८.३-३४ में वायु (हवा) से कहा गया है : "वह
कहाँ पैदा हुआ और कहाँ आता है? वह देवताओं का जीवनप्राण, जगत की सबसे बड़ी
संतान है. वह देव जो इच्छापूर्वक सर्वत्र घूम सकता है. उसके चलने की आवाज
को हम सुनते है किन्तु उसके रूप को देखते नहीं."
इन मक्कारियों के विषय में आप क्या कहना चाहेंगे जरुर लिखे .....?.................क्रमश:
नोट : मेरा किसी की भावनाओं को ठेस पहुचाने का मकसद नहीं है और ना ही मैं
किसी को नीचा दिखाना चाहता हूँ मैंने तो बस वही लिखा है जो वेदों में दर्ज
है अगर किसी भाई को शक हो तो वेदों में पढ़ सकता है आप मेरे मत से सहमत हों
ये जरुरी नहीं है और मैं आपके मत से सहमत होऊं ये भी जरुरी नहीं है. ब्लॉग
पढने के लिए धन्यवाद.
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